गणेश वैद्य
हरिद्वार। संत को दंभ, पाखण्ड, मोह आदि से दूर रहते हुए सभी परिस्थितियों में समान व्यवहार करने की शास्त्रों में बात कही गयी है। संन्यास के संबंध में कहा गया है कि सम्यक रूपेण सामयति इति संन्याय अर्थात जहां समानता है वहीं संन्यास है।
वर्तमान के हालातों पर दृष्टि डालें तो संन्यास की परिषाभा इसके विपरित दिखायी देती है। आज दिखावट, दंभ, पाख्ंाड और धन की लालसा में लोगों को ठगना ही धंधा बन गया है। बात हरिद्वार की करें तो यहां भी साधु को वेभधारण कर उसकी आड़ मंे लोगों को ठगने वालों की कमी नहीं है। ऐसा नहीं की सभी भगवाधारी एक जैसे हैं, किन्तु पांखडी भगवाधारियों के कारण सच्चे संतों को भी समाज गलत दृष्टि से देखने लगा है।
ऐसा ही एक पाखंडी संत का कारनामा पिछले दिनों देखने को मिला, जहां संत ने एक सेठ का सम्पत्ति दिलाने के नाम पर उससे ढ़ाई करोड़ रुपये ले लिए। ने तो सेठ को सम्पत्ति मिल और न ही उसे पैसे वापस मिले। दबंगई दिखाने के बाद अब पैसे वापस मिलने का सिलसिला शुरू हुआ है। सूत्र बताते हैं कि करीब दो वर्ष पूर्व बिजनौर के एक व्यापारी को हरिद्वार में एक प्रतिष्ठित संत ने मध्य हरिद्वार में एक व्यवसायिक सम्पत्ति दिलाने के लिए ढ़ाई करोड़ रुपये लिए थे। उसके बाद संत पैसे लेकर बेपरवाह हो गया। काफी समय बाद जब सम्पत्ति न मिलने पर व्यापारी ने तकाजा किया तो संत महाशय उसे आश्वासन देते रहे। दो वर्ष बाद जक व्यापारी का धैर्य जवाब दे गया तो वह दलबल के साथ संत की कुटिया में जा पहुंचा और संत की पिटाई करने का मन बनाया और समाज को इकट्ठा करने की बात कही। इस बी कुछ लोगों ने बीच बचाव किया और शीघ्र ही संत ने पैसे वापस करने की हामी भरी। सूत्र बताते हैं कि दो माह पूर्व संत ने व्यापारी को डेढ़ करोड़ रुपये वापस किए। 13 अक्टूबर को 50 लाख की दूसरी किश्त और 25 अक्टॅबर को शेष 50 लाख की अंतिम किश्त देनी थी। बताया जाता है कि 13 अक्टूबर की किश्त संत द्वारा नहीं दी गयी है। ऐसे में संत की फजीहत होना लगभग तय माना जा रहा है। एक संत ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अपने यहां अनुष्ठान आदि करने वाले ब्राह्मणों की दक्षिणा आदि देने में भी यह संत काफी परेशान करता है। बताया कि कुछ जमीन बेचकर और कुछ लोगों को टोपी पहनाकर संत ने डेढ़ करोड़ की व्यवस्था की थी, किन्तु लोग अब संत की टोपीबाजी को जान चुके हैं और इसके जाल में फंसने से बचने लगे हैं। बताया कि एक व्यक्ति की नौकरी लगवाने के नाम भी संत उससे दस लाख रुपये ले चुका है। संत ने बताया कि व्यापारी को शेष पैसा समय से न मिलने पर संत की व्यापारी फजीहत करने का मन बना चुका है। यदि ऐसा होता है तो संत का हरिद्वार से बिस्तर गोल होना तय है।