पुलिस के आला अधिकारी ने कसे संतों के पेच

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पट्टाभिषेक से संत नाराज, शहर में होते हुए भी नहीं आए सीएम
हरिद्वार।
विवादों में घिरने के बाद भी पट्टाभिषेक निर्विघ्न सम्पन्न हो गया। बावजूद इसके पुलिस के आला अधिकारी ने संतों केे पेच अवश्य कस दिए। जिस कारण विवाद की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई। इतना ही नहीं हरिद्वार के वरिष्ठ संतों ने भी पट्टाभिषेक से दूरी बनाए रखी। साथ ही नेता की इस कार्यक्रम से खिन्न दिखे।
बतों दें कि निरंजनी अखाड़े के आचार्य पद पर स्वमी कैलाशानंद गिरि का पट्टाभिषेक शुरू से ही विवादों में रहा। पहले निरंजनी के आचार्य मण्डलेश्वर स्वामी प्रज्ञानानंद के तेवरों ने अखाड़े की धड़कने बढ़ायी रखी, उसके साथ संतों में भी नाराजगी दिखी। यही कारण रहा की पुलिस के आला अधिकारी को संतों के पेच कसने पड़े। जिससे तेवर ढ़ीले रहे।
पट्टाभिषेक को लेकर निरंजनी के आचार्य मण्डलेश्वर स्वामी प्रज्ञानानंद गिरि के तेवरों के साथ अग्नि अखाड़े के पदाधिकारी भी नाराज दिखे। मान मनव्वल के बाद अग्नि अखाड़ा कुछ नरम पड़ा। सूत्र बताते हैं कि अग्नि अखाड़े के गुजरात निवासी एक संत ने भाजपा के राष्ट्रीय नेता को पट्टाभिषेक में और अग्नि अखाड़े को हासिए पर लाने की कोशिश कुछ संतों द्वारा किए जाने की शिकायत की। शिकायत का संज्ञान लेते हुए नेता जी ने प्रदेश स्तर पर इस मामले में संज्ञान लेने के निर्देश दिए। जिस पर तत्काल अमल करते हुए प्रदेश स्तर के एक आला अधिकारी पट्टाभिषेक से दो दिन पूर्व अखाड़े पहुंचे और विवाद को लेकर संतों के पेंच कसे। यही कारण रहा कि दो दिन तक हरिद्वार में रहने के बाद भी मुख्यमंत्री ने पट्टाभिषेक कार्यक्रम में शिरकत नहीं की। वे बाबा रामदेव के यहां अपनी खिचड़ी बनाने और खाने में ही मस्त रहे। इतना ही नहीं हरिद्वार के प्रमुख संतों ने भी पट्टाभिषेक कार्यक्रम से दूरी बनायी रखी। जिनमें जमना अखाड़े के आचार्य स्वमी अवधेशानंद गिरि , जूना अखाड़े के सरंक्षक व अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रभ्महंत हरिगिरि महाराज, वरिष्ठ मण्डलेश्वर भी नदारत रहे। समारोह में शिरकत ने करने के कारण अधिकांश वरिष्ठ संत हरिद्वार से बाहर ही चले गए। इतना ही नहीं पट्टाभिषेक कार्यक्रम की अध्यक्षता करने वाले और स्वामी कैलाशानंद गिरि को संन्याय देने वाले महामण्डलेश्वर व शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज भी उपेक्षा से नाराज दिखे। समाचार में कहीं भी स्वामी राजराजेश्वराश्रम का जिक्र तक नहीं हुआ। बताया जाता है कि संतों की कार्यप्रणाली से संतों के साथ नेताओं में भी नाराजगी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर में होते हुए भी मुख्यमंत्री समारोह में नहीं पहंुचे।

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