रुड़की में पत्रकारिता के एक स्तंभ थे एसएस सैनी: नारसन

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रुड़की/संवाददाता
यह बात 16 सितंबर सन 2018 की है। उस दिन बड़े सवेरे सवा चार बजे मोबाइल की घण्टी बजी तो सोचा अलार्म बजा है। सुबह की मीठी नींद से उठकर मन भर्मित सा हो गया कि अलार्म तो चार चालीस का लगाया था फिर यह सवा चार बजे कैसे बज गया। यह सोच ही रहा था कि मोबाइल की घण्टी फिर घनघना उठी। फोन उठाया तो खबर आई कि वरिष्ठ पत्रकार एस एस सैनी नही रहे। एक बार तो विश्वास ही नही हुआ, होता भी कैसे कल ही तो उनका फोन आया था, अपनी पोत्री के जन्म दिन उत्सव से लौटने के बाद बहुत खुश थे। ह्रदय और किडनी की बीमारी उन्हें परेशान जरूर कर रही थी लेकिन यह आभास किसी को नही था कि वे इन बीमारियो से हार जाएंगे। मूलतः उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद मे बेहट क्षेत्र के निवासी एसएस सैनी ने वकालत की पढ़ाई की और कुछ समय तक सहारनपुर की कचहरी मे वकील के रूप मे काम भी किया। लेकिन मनोहर कहानिया जैसी पत्र पत्रिकाओ मे लिखने के उनके शोंक ने उन्हें पत्रकार बना दिया। वह भी इस हद तक कि वकालत छोड़कर उन्होंने पत्रकारिता को ही अपना कैरियर बना लिया। अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित अखबार से लम्बे समय तक जुड़े रहे एस एस सैनी रुड़की पत्रकारिता के एक ऐसे स्तम्भ कहे जा सकते है, जिनके बिना कोई भी प्रेस कांफ्रेंस या कार्यक्रम अधूरा सा लगता था। बेहद भावुक प्रकृति के होने के कारण उन्ही आंखो मे सहज ही आंसू भी आ जाते थे। अपने काम के प्रति समर्पित एस एस सैनी ने अपने बच्चों का कैरियर बनाने के लिए अपनी खेती की जमीन तक बेच डाली थी और बैंक से ऋण लेकर अपने बच्चों को इंजीनियर बनाया। एस एस सैनी ने शाह टाइम्स मे भी काम किया और मौजूदा समय मे राष्ट्रीय सहारा के रुड़की प्रभारी थे। मेरे साथ उन्होंने कई यात्रायें की और सुबह की सैर के तो वे पक्के साथी थे। एक बार ब्रह्माकुमारीज् की माउंट आबू मे आयोजित राष्ट्रीय मीडिया सेमिनार मे भाग लेने मेरे साथ वे सपत्नीक गए, तो पता चला कि एस एस सैनी अध्यात्म पर भी गहरी पकड़ रखते थे। नियमित पूजा पाठ करना और दिन दुखियो की सहायता करना भी उन्हें बहुत भाता था। विज्ञान से जुड़े उनके लेख बेहद पठनीय होते थे। विपरीत हालात मे काम करना और पत्रकारो की नई पौध को तैयार करने मे उन्हें महारथ हासिल थी। वे उम्र मे छोटे पत्रकार साथियो के साथ भी सहजता से सामन्जस्य बैठा लेते थे। मात्र 59 वर्ष की आयु मे अचानक उनका चले जाना अपने पीछे एक बड़ा खालीपन छोड़ गया है। वे मेरे साथ महाकाल के दर्शन करने उज्जैन भी जाना चाहते थे लेकिन उनकी यह हसरत पूरी नही हो पाई। उनके जाने से रुड़की की पत्रकारिता को ही नही अपितु पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड को भारी क्षति हुई। विश्वास है परमात्मा ने उन्हें अपने सानिदय मे ले लिया होगा और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त हो गई होगी। मेरा उन्हें शत शत नमन।

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