दुनिया में वेद के ज्ञान को बिखेरने की आवश्यकताः निशंक

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दो दिवसीय वैदिक संगोष्ठी में 90 से अधिक शोध पत्रों का हुआ वाचन
हरिद्वार।
उत्तराखण्ड संस्कृत विवि में अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी के समापन अवसर पर शनिवार को केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि विश्व का सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद है। यह हम सबका सौभाग्य है कि उत्तराखण्ड की भूमि में वेदों, पुराणों,उपनिषदों एवं आयुर्वेद का जन्म हुआ है। मनुष्य ईश्वर की सुन्दरत्म कृति है, वेद पुराणों में निपुण व्यक्ति ईश्वर का वरदान हैं। मनुष्य चाहे संसार में सब कुछ प्राप्त कर ले लेकिन उसके सभी रास्ते वेद पर आकर पहुंचते हैं इसलिए दुनिया में वेद के ज्ञान को बिखेरने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा की दुनिया वर्तमान में अनेक संकटों से जूझ रही है, वेदों का सही रूप में प्रचार-प्रसार हो जाए तो उन सभी संकटों का समाधान वेद के ज्ञान से हो सकता है। वेदों को विज्ञान से जोड़ने की बात करते हुए उन्होंने कहा कि वह पिछले दिनों में विश्व के अनेक देशों में गये, दूसरे देशों के कई विद्वानांे ने जब वेद को विज्ञान के साथ जोड़कर दिखाया तो वह आश्चर्य में पड़ गये कि दुनिया के लोग वेदों का अनुसरण कर रहे हैं। यह विचारणीय प्रश्न है कि हम वेदों को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न आयामों के साथ कैसे जोड़ें। उन्होंने बताया कि नवाचार और अनुसंधान के जरिये हम वेद में निहित ज्ञान को मानव और जगत के कल्याण के लिए उपयोग कर सकते हैं। डाॅ. निशंक ने कहा कि नई शिक्षा नीति जल्दी ही आने वाली है, शिक्षा नीति मंे हम वेद की बातों को समाहित कर सकें ऐसी हमारी कोशिश है।
कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि वेद ऐसी विद्या है जिसका अध्ययन करने से निश्चय ही व्यक्ति को समाधान मिलते हैं, उस विद्या का कोई महत्व नहीं होता जो दूसरों को लाभ न दे सके।
लाल बहादुर षास्त्री राश्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली के कुलपति, डा. रमेश पाण्डेय ने बताया कि विद्या का मार्ग वेद से प्रारम्भ होता है, यही विद्या धर्म, अर्थ, काम और मो़क्ष को प्रदान करने वाली है। आज के परिवेश में इस विद्या का पठन-पाठन सामाजिक एवं बौद्धिक जगत के लिए अत्यन्त आवश्यक है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव गिरीश अवस्थी ने अखिल भारतीय वैदिक संगोश्ठी में आये हुये सभी अभ्यागतों का आभार प्रकट किया। संगोष्ठी को विनोद प्रसाद रतूड़ी संस्कृत शिक्षा सचिव, प्रो.वीरूपाक्ष वी.जड्डीपाल, संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष प्रो. प्रेमचन्द्र शास्त्री, प्रो.पीएसएचराव निदेशक, वास्तुकला, योजना विद्यालय के निदेशक नई दिल्ली ने भी संबोंधित किया। संगोष्ठी का सार संयोजक डाॅ. अरूण कुमार मिश्र ने प्रस्तुत किया तथा संचालन डाॅ. कंचन तिवारी ने किया।
संगोश्ठी के दूसरे दिन देश-विदेश के विद्वान, शिक्षाविद्व एवं षोधार्थियों ने 54 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गए। हांलैण्ड के प्रो. आस्ले डीन्स और प्रो. आशुतोष ऊस्र्ट, स्ट्रबल ने अपने विचार रखे।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रो. मोहन चन्द्र बलोदी, प्रो. दिनेश चन्द्र चमोला,डाॅ. प्रतिभा षुक्ल, डाॅ. कामाख्या, कुलानुशासन डाॅ. मनोज किशोर पन्त, डाॅ. अरविन्द नारायण मिश्र, छात्र कल्याण अधिश्ठाता डाॅ. लक्ष्मीनारायण जोशी, डाॅ. रामरतन खण्डेलवाल, उपकुलसचिव दिनेश कुमार, डाॅ. बिन्दुमती द्विवेदी, डाॅ. प्रकाश चन्द्र पन्त,डाॅ. श्वेता अवस्थी, मिनाक्षी, डाॅ. विनय सेठी, डाॅ. उमेश शुक्ल, डाॅ. अजय कुमार, डाॅ. दामोदर परगांई, डाॅ. रत्नलाल कौशिक, सुशील चमोली, डाॅ. राकेश कुमार सिंह, छात्र कल्याण अध्यक्ष प्रभात पंवार, सूरज डोभाल,चन्दन सिंह रावत, सुभाष पोखरियाल, सहित भारी संख्या में छात्र छात्रायें आदि उपस्थित थे।

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