इसे बेबसी, मजबूरी या लाचारी कहे, खराब खाना और अधूरी व्यवस्था के बीच थक-हारकर हरिद्वार जाने को मजबूर हुए मजदूर

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दैनिक बद्री विशाल
रुड़की/संवाददाता

कोरोना महामारी का आतंक इस कदर फैल जायेगा, इसकी शायद किसी ने कल्पना भी नही की होगी। ऐसे हालात में देश और दुनिया में लॉकडाउन लगा हुआ है, लेकिन इस लॉकडाउन में कितने ही घर बेरोजगार हुए, इसका शायद ही सरकार पर कोई आंकड़ा होगा। लेकिन हकीकत यह है कि जो दावे सरकार मजदूरों के हितों या लॉकडाउन के दौरान आमजन तक सुविधाएं पहुंचाने के लिए कर रही है, वह बिल्कुल धरातल पर इसके उलट नजर आ रही हैं। देश के कोने-कोने से जो भी मजदूरों, गरीबों का मार्मिक दृश्य देखने को मिल रहा है, उसमें कहीं ना कहीं मानवता बिल्कुल तार-तार हो रही है। ऐसा ही दृश्य रुड़की शहर में भी देखने को मिला, जब सोमवार को दोपहर करीब 100 मजदूर चारों और से परेशान और निराश होकर स्वयं ही अपनी जिम्मेदारी पर हरिद्वार के लिए निकल पड़े। जब इस बात की भनक मीडिया को लगी, तो मीडिया कर्मी बड़ी संख्या में मौके पर पहुंचे और मामला उठा, तो पुलिस मौके पर पहुंची। इस दौरान पुलिस ने अपनी जान छुड़ाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग व लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाते हुए मजदूरों को ट्रक व छोटे हाथी में बैठाकर रवाना कर दिया। इस दौरान कौन व्यक्ति संक्रमित है या नही, इसका भी किसी को अंदाजा नहीं लग पाया। यहां यह बात कहना भी गलत नहीं है कि यह सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए ही दावे किए जा रहे हैं, क्योंकि आम जनता के जब हक की बात आती है तो यह सभी अधिकार उनसे कोसों दूर भागने लगते हैं, यही कारण है कि आमजन और देश का गरीब, मजदूर, किसान आज सड़कों पर नजर आ रहा है।

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