बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोरोना की गहरी छापः डॉ. शिव कुमार

Haridwar Health Latest News Roorkee social

हरिद्वार। वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण से देश-दुनिया के अधिकांश शहर तथा वहां रहने वाले लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। इस वायरस के प्रभाव से अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था, जीवन-शैली, शिक्षा, सामाजिक ढांचा, जैव-विविधता एवं स्वास्थ्य सर्वाधिक प्रभावित हुए है। वही भारत में इस महामारी ने जीवन की महत्ता से जुडे अधिकांश क्षेत्रों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। जिसमंे मानवीय स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य सुविधाओं से जुडी आवश्यकताओं में तकनीकी विकास, संसाधन एवं गुणवत्ता में कमी आदि मूलभूत सुविधाएं शामिल हैं। कोरोना के संक्रमण ने लोगों की जीवन-शैली में ऐसा बदलाव ला दिया है कि लोग अपने अतीत का वह समय जिसमंे कम सुविधाएं तथा संसाधन होने पर भी जीवन की मूल्यपरक बातों के महत्व को जीवन का सर्वोत्तम आधार मानने पर विवश हो गएं हैं। ऐसा इसलिए नहीं की कोरोना ने हमारी वाहय तथा आन्तरिक दोनांे स्थितियों पर कुठाराघात किया है, अपितु इसलिए क्यांेकि यही जीवन का परम वास्तविक सत्य है।
वर्तमान पीढी देश की भावी पीढी के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए मूलभूत सुविधाओं के स्रोत तथा सामाजिक ढांचे में जब कोई बदलाव करती है तब इस बदलाव के साथ-साथ भावी पीढी के स्वस्थ्य एवं सम्पन्न जीवन की नई आधारशिला तैयार करना भी उसका दायित्व होता है। कोरोना के प्रभाव ने भावी पीढी के स्वस्थ एवं सम्पन्न जीवन की उसी आधारशिला पर भी प्रहार किया है।
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से यह पता चलता है कि बडों के जीवन को अव्यवस्थित करने के साथ ही कोरोना ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डाला है। आज बच्चे कोरोना महामारी के कारण स्वयं को ज्यादा असुरक्षित एवं चिंतित अनुभव करने लगे है। असुरक्षा के इस भाव ने बच्चों के कोमल मन पर चिंता, डर, चिडचिढापन, उत्तेजना, अधिक संवेदनशीलता, गुस्सा, एकाकीपन जैसे मानसिक विकारो कोे पैदा कर दिया है। सामान्य स्थिति में माता-पिता बच्चों को इन मानसिक विकारो की स्थिति तथा उनके कारण को बच्चों के अनुभव से दूर रखते थे। परन्तु कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न लॉकडाउन तथा कर्फ्यु जैसी स्थिति में एक ओर जहां माता-पिता स्वयं एंग्जाईटी, फ्रस्टेशन, डिप्रेशन के साथ संवेदनशीलता तथा भविष्य से जुडी कई चिंताओं से घिरे है, तो ऐसे में बच्चों को इन मानसिक विकारों से बचाने के प्रयास कैसे संभव हो, यह भी चिंता का विषय है। एकल परिवार के सामने आज यह सबसे बडी समस्या बनकर उभरी है कि माता-पिता में से किसी एक के भी मानसिक स्वास्थ्य मे असंतुलन आने तथा इस असंतुलन के कारण उत्पन्न परिस्थतियों का सामना करने के लिए परिवार में कोई अन्य विकल्प न होने के कारण सर्वाधिक प्रत्यक्ष प्रभाव बच्चों पर ही पडता है। जिसके कारण बच्चों में अधिक संवेदनशीलता तथा अपने मन के अनुकूल कार्य करने की प्रवृत्ति बढती जा रही है।
इस प्रकार के व्यवहारिक परिवर्तन तथा लक्ष्य प्राप्ति में होने वाली देरी अथवा विफलता के कारण बच्चे स्वयं को प्रभावित होने से रोकने मे असमर्थ हो रहे है। परिणाम स्वरूप बच्चों मे हिंसक प्रवृत्ति के साथ आत्म हत्याएं जैसी विकृत मानसिक स्वास्थ्य से जुडी घटनाएं बढती जा रही है। इसलिए वर्तमान पीढी का यह दायित्व बनता है कि कोरोना जैसी विषम स्थिति में भी बच्चों की संवेदनशीलता तथा उनकी रूचि को महत्व प्रदान करते हुए उनसे बेहतर संवाद बनाएं रखे तथा विषम परिस्थिति में समस्या समाधान मे मित्रवत व्यवहार रखते हुए इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक प्रेरक के रूप में उनके साथ रहे। ऐसा करने से बच्चों मे असुरक्षा की भावना कम होगी तथा वे स्वयं की क्षमता का सदुपयोग करते हुए रचनात्मक ढंग से लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ सकेगंें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *