गुड़ देखते ही भिनभिनानें लगी मक्खियां

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जो मंदिरों को ठेके पर दे रहे वे राम मंदिर ट्रस्ट में मांग रहे हिस्सेदारी
हरिद्वार।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा श्री राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद संत सक्रिय हो गए हैं। फैसले को लेकर संतों में खुशी है। खुशी इस बात को लेकर तो है ही कि अब सदियों पुराना इंतजार खत्म हो गया है और भव्य राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया है। साथ ही कोर्ट द्वारा मंदिर ट्रस्ट बनाए जाने के केन्द्र सरकार को निर्देश देने और संतों को शामिल करने के फैसले के कारण संतों में दोहरी खुशी है। संतों ने फैसले के बाद स्वंय को श्री राम मंदिर ट्रस्ट में शामिल किए जाने की मांग शुरू कर दी है। अभी लोगों ने कोर्ट के फैसले को ठीक से पढ़ा भी नहीं है और मांग आनी शुरू हो गयी है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और महामंत्री को ट्रस्ट में शामिल करने की केन्द्र सरकार से मांग की है। स्थिति ठीक वैसी ही है कि गुड देखा नहीं और मक्खियां भिनभिनाना शुरू हो गईं। कारण की ट्रस्ट में जिन संतों को शामिल किया जाएगा समझा उनकी तो पौ बारह हो गयी। मंदिर ट्रस्ट में शामिल होकर कुछ संत संतों और देश की राजनीति में अपना दबदबा बनाना चाहते हैं। यही कारण है कि ट्रस्ट में शामिल करने की मांग उठ चुकी है।
देश में वर्तमान में यदि मंदिरों की स्थिति देखी जाए तो करीब-करीब सभी मंदिर ऐसे हैं जहां लोगों की तो आस्था है किन्तु उनका संचालन करने वाले केवल मंदिर का कमायी का जरिया बनाए रखना चाहते हैं। यहां तक की अखाड़ों और आश्रमों ने मंदिरों को ठेके पर दिया हुआ है। तीर्थनगरी हरिद्वार की बात करें तो यहां भी कई प्राचीन मंदिर ऐसे हैं जिनमें लोगों की अटूट आस्था है और उनका संचालन वार्षिक दर की हिसाब से ठेके पर किया जा रहा है।
यह विचारणीय है कि जो संत मंदिरों में आरती-पूजा करना उचित नहीं समझते और न ही वंहा समय देना चाहते हैं, केवल आर्थिक लाभ के लिए मंदिरों को ठेके पर दिया हुआ है। ऐसी स्थिति में संतों को श्री राम मंदिर ट्रस्ट में शामिल करने का क्या औचित्य। केन्द्र सरकार को ऐसे अखाड़ों, आश्रमों और संतों को ट्रस्ट में कतई शामिल नहीं करना चाहिए जिनके द्वारा मंदिरों को ठेके पर दिया गया है। ठेके पर मंदिरों को दिए जाने से संतों की आस्था स्पष्ट दिखायी देती है कि इन्हें भगवान की भक्ति और पूजा-पाठ के कोई सरोकार नहीं। इन्हें तो केवल आर्थिक लाभ से मतलब है और यही कारण है कि कोर्ट का फैसला आने के बाद संत श्री राम मंदिर ट्रस्ट में संतों को शामिल करने की मांग करने लगे हैं। यहां हो सकता है कि ट्रस्ट में शामिल होने पर आर्थिक लाभ न हो, किन्तु इतना तो जरूरी है कि संतों और देश की राजनीति में दबदबा बनाने का ऐसे भगवाधारियों को मौका अवश्य मिल जाएगा और उसी का लाभ उठाकर ये करोड़ों के व्यारे-न्यारे करने से पीछे नहीं हटेंगे।

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