परमादर्श मण्डलेश्वर समिति की तर्ज पर मण्डलेश्वर गठन कर सकते हैं नया संगठन

dehradun dharma Haridwar Latest News Roorkee social uttarakhand

अखाड़ों की दादागिरि से निजात पाने का निकाला फार्मूला
हरिद्वार।
अखाड़ों की कार्यप्रणाली से नाराज होकर जिस प्रकार से वर्ष 1974 में परमादर्श मण्डलेश्वर समिति का जन्म हुआ ठीक उसी प्रकार एक और नया मण्डलेश्वरों का संगठन कुंभ में खड़ा हो सकता है। इसके संबंध में कुछ वरिष्ठ मण्डलेश्वरों की आपस में चर्चा भी हुई है। साथ ही इस संगठन में सभी अखाड़ों के मण्डलेश्वर शामिल होंगे।
बता दें कि वर्ष 1974 में संन्यास मार्ग स्थित श्री कृष्ण निवास आश्रम के स्वामी पूर्णानंद महाराज का अपने शिष्य गणेशानंद को मण्डलेश्वर पद हटाने को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। इसी बीच अखाड़े के तत्कालीन सचिव गिरधर नारायण पुरी महाराज ने मण्डलेश्वर स्वामी गणेशानंद महाराज को पद से हटाने तथा पूर्णानंद महाराज का दोबारा पट्टाभिषेक करने का फरमान जारी कर दिया। अखाड़े के इस आदेश के बाद स्वामी गणेशानंद महाराज कोर्ट से स्टे ले आए। जिसमें मोहन जगदीश आश्रम के मण्डलेश्वर स्वामी जगदीश्वरानंद महाराज ने कोर्ट में गणेशानंद महाराज के पक्ष में गवाही दी। इसके बाद अखाड़े ने स्वामी जगदीश्वरानंद महाराज को भी मण्डलेश्वर पद से हटाने का फरमान जारी कर दिया। अखाड़े के इस फरमान का संन्यास आश्रम के महामण्डलेश्वर स्वामी महेशानंद पुरी महाराज ने विरोध किया। तथा विरोध का एक पम्पलेट निकाल कर उसका वितरण भी करवाया गया। साथ ही उन्हों ने अखाड़े के फरमान का अनुचित बताते हुए कहाकि कोई भी संस्था को यह अधिकार है कि वह अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर सकती है। अखाड़ा और संत समाज उस व्यक्ति को केवल चादर देकर मान्यता देता है। यही बनाने और हटाने की विधि है। स्वामी महेशानंद पुरी महाराज ने कहाकि यदि अखाड़ा उनकी बात को मानता है तो ठीक अन्यथा हमारा अखाड़े के साथ संबंध विच्छेद है। इसके बाद संतों में विवाद चलता रहा। वर्ष 1986 के कुंभ में साधना सदन के महामण्डलेश्वर त्यागमूर्ति स्वामी गणेशानंद महाराज ने स्वामी जगदीशपुरी को मण्डलेश्वर बनाने का निश्चय किया। निमंत्रण पत्र छपवाए गए। जिसमें लिखा गया की कैलाश आश्रम की परम्परा के अनुसार मण्डलेश्वर बनाया जाएगा। इसका निरंजनी अखाड़े ने विरोध किया। निरंजनी अखाड़े के महंतों का कहना था कि अखाड़ा ही मण्डलेश्वर बनाएगा। बावजूद इसके अखाड़े ने स्वामी जगदीशपुरी महाराज को मान्यता नहीं दी। इसके साथ ही 1974 में गठित की गयी परमादर्श मण्डलेश्वर समिति का वर्ष 1986 में संविधान तैयार किया गया। इसमें समिति को अखिल भारतीय परमादर्श आचार्य महामण्डलेश्वर समिति नाम दिया गया। जिसका संस्थापक अध्यक्ष कैलाश आश्रम के स्वामी विद्यानंद महाराज को बनाया गया। निरंजनी अखाड़े के मण्डलेश्वर बनाने के प्रलोभन में आकर स्वामी विद्यानंद महाराज निरंजनी अखाड़े में चले गए। बावजूद इसके वह मण्डलेश्वर नहीं बन पाए। वहीं उज्जैन कुंभ में निरंजनी के आचार्य मण्डलेश्वर स्वामी पुण्यानंद गिरि महाराज को अपमानित किए जाने से उन्होंने आचार्य पद छोड़ दिया। इसके बाद अखाड़े ने बिना किसी कारण आचार्य पद से स्वामी प्रज्ञानानंद गिरि महाराज को हटाकर स्वामी कैलाशांनद गिरि को आचार्य बना दिया। इन सभी से क्षुब्ध होकर वरिष्ठ मण्डलेश्वरों ने यह निर्णय लिया कि अखाड़े की इस प्रकार की दादागिरि को रोकने और उससे निजात पाने के लिए एक संगठन तैयार किया जाएगा। जिसमें सभी अखाड़ों के मण्डलेश्वर जो शामिल होना चाहे सम्मलित किया जाएगा। यदि भविष्य में किसी मण्डलेश्वर को पद से हटाने या फिर अनैतिक दबाव बनाने की बात सामने आती है तो उसका विरोध किया जाएगा और आवश्यकता पड़ी तो सभी सामूहिक रूप से पद से त्यागपत्र देंगे। किन्तु अनैतिक रूप से अखाड़ों को दादागिरि को नहीं चलने दिया जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *