रुड़की। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा अभी तक किसानों के गन्ने का मूल्य निर्धारित नहीं किया गया। जबकि सभी मिलें 2020-21 का नवम्बर माह से अपना पेराई सत्र सुचारू किये हुये हैं। ऐसे क्या कारण है कि अभी तक गन्ने का भाव तय क्यों नहीं किया गया। ऐसे मंे मिल प्रबन्धक मण्डल भी इस सत्रा के गन्ना भुगतान को लेकर अपने हाथ खड़े कर रहा है कि जब गन्ने का भाव तय होगा, तभी वह गन्ने का भुगतान कर पायेंगे। वहीं राज्य सरकार द्वारा किसानों की समस्याओं के निराकरण को लेकर किसान मोर्चे का गठन किया गया और उसमें जिम्मेदार लोगों को रेवड़ी की तरह पद बांट दिये गये। लेकिन ऐसे लोग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कम व रियल स्टेट के कारोबार में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। सूबे की जहां एक ओर कई मीलों ने अभी तक किसानों के पुराने गन्ने का भी भुगतान नहीं किया, वहीं इकबालपुर मिल पर भी, यदि इस सत्र को छोड़ दें, तो पिछले 3 वर्ष का गन्ना भुगतान अभी तक बकाया चल रहा हैं। दरअसल सरकार भी किसानों की समस्याओं को लेकर गम्भीर दिखाई नहीं देती। यही कारण है कि अपनी विकट समस्याओं को लेकर दिल्ली में भी किसान धरनारत् हैं। जब गन्ना भुगतान व इस सत्र के गन्ना मूल्य निर्धारण के सम्बन्ध में भाजपा किसान मोर्चा के नेताओं पत्रकारों द्वारा वार्ता की गई, तो वह इधर-उधर की बातें कर मीडिया को गुमराह करते नजर आये। जबकि वह खुद किसान हैं, और उन्हें अपनी ही सरकार द्वारा बड़ी जिम्मेदारी दी गई हैं, इसके बावजूद भी वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाये। वहीं भाजपा किसान मोर्चा के दो पदाधिकारियों से फोन पर बातचीत कर इस समस्या के बारे मंे जानकारी लेनी चाही गई, पहले तो वह बोलते नजर आये और बाद में फोन में आवाज न आने का बहाना लेकर कन्नी काटते नजर आये। ऐसे मंे अब यह भी सवाल उठ रहा है कि सरकार द्वारा अपने मोर्चे को मजबूत करने के लिए ऐसे पदाधिकारियों को क्यों चुना गया, जो सरकार की गतिविधियों से भी बेखबर हैं। ऐसे में भाजपा किसान मोर्चा के पदाधिकारियों की कार्यशैली बेहद लचर दिखाई देती हैं। इसमें सरकार व भाजपा संगठन को संज्ञान लेकर उन्हें पार्टी की रीति-नीति से रुबरू जरूर कराना चाहिए। ताकि सरकार द्वारा संचालित किसान नीतियों की जानकारी वह आम जनता तक सरलतापूर्वक पहंुचा सके।