कोरोना हमारी संस्कृति के लिए एक अभिशाप

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घर में बदल रहा मेहमान के प्रति नजरिया और व्यवहार
हरिद्वार।
मनोवैज्ञानिक डॉ. शिव कुमार ने कहाकि भारतीय परिवेश में मेहमान को अतिथि अथवा देवताओं के समान स्थान दिया गया है। अतिथि देवो भवः। मेहमान को देखकर हमारे मन का प्रसन्न होना तथा जीवन के कठिन अनुभव मेहमान से साझा करके स्वयं को हल्का महसूस करना जीवन मंे सदा से रचा बसा रहा है। मेहमान हमारे जीवन मे एक हितेषी तथा परामर्शक का स्थान रखता है। जीवन मे होने वाले उतार-चढाव अथवा पैदा हुई सामाजिक दूरियों की वजह ढूंढने में मेहमान ही हमारे शुभचिंतक होते हैं। ज्यादातर ये मेहमान हमारे नाते अथवा सगे-संबंध की पृष्ठभूमि से जुडाव रखते हैं। जो हमारे पुरातन एवं वर्तमान रिश्तों की गहराई को भली भॉति समझते है। अतः उनके द्वारा दिया गया परामर्श जीवन की गहराई को कम करने मे मददगार होता है। इसलिए मेहमान हमारे व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के बीच एक सेतु के रूप में सहायक होते है।
कहाकि जीवन मंे मेहमान का महत्वपूर्ण स्थान होने पर आज उसके प्रति व्यवहार का नजरिया बदल रहा है। मेहमान को देख कर जो मन प्रसन्न होता था आज उसे देखकर चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगती हैं। सामाजिक दूरी संक्रमण की कठिनाई को भले ही दूर कम कर रही हो लेकिन रिश्तों में दूरी अवश्य पैदा कर रही है। कहाकि मेहमान को ड्राईग रूम मंे बिठाना उसका सत्कार करना तथा आत्मसम्मान देना यह पूरी तरह बदल गया है। मेहमान को देखकर कमरे मंे बैठा व्यक्ति बाहर निकल कर गैलरी या लॉबी में बैठाकर दूर से ही बात करने का प्रयास करने लगा है। आवश्यक न हो तो रास्ते मे खडें होकर कुछ पल बात करके दूर से ही मेहमान को विदा करने का चलन बढ़ने लगा है। यदि परिस्थितिवश मेहमान बैंठ भी जाए और आवभगत में जलपान अथवा चाय परोसने की स्थिति बन जाए तो चाय परोसने से पहले मेजबान और मेहमान दोनों के बीच संक्रमण को लेकर ऐसी संदेहास्पद स्थिति बन जाती है कि चाय पीने वाला तथा पिलाने वाला दोनों चिंता के शिकार रहते हैं।
डा. चौहान के मुताबिक सत्कार के तरीके मे यह बदलाव सामाजिक व्यवस्था के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है। जो जनमानस के लिए एक बडे परिवर्तन का सूत्रपात करने की दिशा में पहला कदम है। सामाजिक ढांचे का यह बदलाव बहुत कुछ संकेत दे रहा है। आने वाला समय व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक चिंता के साथ उसके सामाजिक धरातल को भी अस्थिरता प्रदान करने वाला होगा। अर्थात कोरोना हमारी संस्कृति के लिए एक अभिशाप सिद्व हो रहा है। इस महामारी ने कुछ महीनों में दुनिया की प्रगति एवं सम्पन्नता के साथ उसके सामाजिक एवं स्वास्थ्य ढांचे पर जोे प्रहार किया है, उसने इसकी वाह्य तथा अन्तरिक मजबूती को ध्वस्त कर दिया है। आने वाले समय में यह महामारी ओर क्या-क्या रंग दिखाएगी यह तो अभी अतीत के गर्भ में सुरक्षित है।

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