गुरुकुल कांगड़ी विवि में हरिद्वार लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारम्भ
हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय और अन्तःप्रवाह सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय हरिद्वार लिटरेचर फेस्टिवल का शुक्रवार को ओपन माईक सेशन के द्वारा शुरूआत की गयी। इस सत्र में हिन्दी की कविता, लघु कथा और कहानियों का मंचन किया गया। अध्यक्षता साहित्यकार डा. योगेन्द्रनाथ शर्मा और गीतकार रमेश रमन ने किया। इसी के साथ अंग्रेजी कविता, कहानियां और लघु कथाओं का मंचन किया गया। अंग्रेजी सत्र की अध्यक्षता प्रो. पीएस चौहान और प्रो. हामिद ने की। मनु शिवपुरी, विदुषी पाण्डेय, राशि सिन्हा, श्रद्धा सैनी, सौम्या दुआ, दिव्या शर्मा, श्वेताम्बरी तिवारी, वीणा कौल, नीता नय्यर, मोनिका देवी, रंजीता सिंह, बबली वसिष्ठ, सुशील शैली, मीनाक्षी शर्मा, एएस कुशवाह ने ओपन माईक सेशन में कविता, लघु कथा और कहानियों का मंचन किया। इस सत्र का संचालन डा. अजीत तोमर ने किया।
हरिद्वार लिटरेचर फेस्टिवल का उद्घाटन बालीवुड के सुप्रसिद्ध गीतकार व फेस्टिवल के मुख्य अतिथि समीर अंजान व रूबी गुप्ता ने द्वीप प्रज्वलित कर किया। उन्होंने कहा कि हरिद्वार से साहित्य की गंगा बहनी चाहिए। धर्मनगरी हरिद्वार साहित्य कला और संस्कृति का प्रमुख केन्द्र है। यहां के वाशिंदों में साहित्य की धारा बहती है और इस साहित्यिक गंगा को फेस्टिवल के द्वारा पल्लवित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में साहित्यिक प्रेमियों को नए ढांचे में ढालने की आवश्यकता है। युवा पीढ़ी साहित्य के प्रति काफी गम्भीर है, साहित्य का परिवेश जहां होता है वहां इंसान का निर्माण होता है। साहित्य इंसान के अन्दर भावनाओं को जागृत करता है, और साहित्य एक दूसरे से जोड़ने का काम करता है। चाहे कविता हो या गीत उसमें रस होता है और रस हमारे अंदर से निकलता है, जो इंसान को इंसान से जोड़ने का काम करता है। साहित्य का वर्गीकरण करना जरूरी नहीं है। अपितु साहित्य को समझो और अपने अन्दर ढ़ालने की कोशिश करो। उन्होंने कहा कि रूढिवादी सोच को अपने अन्दर नहीं पनपने देना चाहिए। इस तरह की सोच से हमारे अन्दर नकारात्मक शक्ति का प्रादुर्भाव होता है और साहित्य हमारे अन्दर क्रन्दन करने लगता है। कहाकि प्रत्येक व्यक्ति को आलोचनावादी नहीं होना चाहिए। आलोचनावादी व्यक्ति साहित्यकार नहीं हो सकता। साहित्य समाज व देश को नई दिशा देता है। उन्होंने जेएनयू में हो रहे मशले पर दो टूक बोलते हुए कहा कि इस मुल्क में बहुत बड़े बदलाव होने के संकेत दिखाई दे रहे हैं, बदलाव होना अच्छा है। व्यक्ति की सोच में बुराई नहीं होनी चाहिए। आवाम का फैसला अच्छा होता है लोगों को खुद ही सब कुछ समझ में आ जाएगा। यह बदलाव का दौर है।
विशिष्ट अतिथि कहानीकार संजय सिन्हा ने कहा कि साहित्य ही व्यक्ति का निर्माण करता है, साहित्य व्यक्तित्व का विकास करता है, साहित्य इंसान को इंसान बनाता है, साहित्य हमारे अन्दर करूणा पैदा करता है। साहित्यकार कभी भी हिंसावादी नहीं हो सकता। साहित्य का गुण हमें परिष्कृत करता है। उन्होंने कहा कि मां लोरिया देकर कहानियां सुनाती थी, वहीं से साहित्य हमारे अन्दर पल्लवित होता है। कहाकि साहित्य बहुत बड़े इंसान का निर्माण करता है। आज हमारे मानवीय मूल्य खत्म हो रहे हैं। परिवार एकांकी होता जा रहा है, जिससे रिश्तों में तनहाई पैदा हो रही है। रिश्तों को पल्लवित करने की बहुत अधिक आवश्यकता है। रिश्ते बनाइए और उसे जीने की कोशिश कीजिए। रिश्ते संवाद से चलते है और संवाद का माध्यम साहित्य है। साहित्य को भाषा की परिधि में नहीं बांधा जा सकता।
इस अवसर पर समीर अंजान का प्रो. श्रवण कुमार शर्मा, संजय हाण्डा, प्रो. वीके सिंह, जगदीश पाहवा, डा. करूणा शर्मा ने शिल्ड और रूद्राक्ष की माला देकर सम्मानित किया।