हरिद्वार। भारतीय प्राच विद्या सोसाइटी कनखल के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पं. प्रतीक मिश्रपुरी ने बताया कि समूचे ब्रह्मांड में 12 स्थानों पर कुंभ होते है। जिनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर दो स्वर्गलोक में, दो नाग लोक में, दो गंधर्व लोक में तथा दो यक्ष लोक में होते हैं। सबसे अधिक पृथ्वी लोक में चार होते है। इसमें कुंभ राशि में गुरु आने पर हरिद्वार में, वृष राशि में गुरु होने पर प्रयाग में, उज्जैन कुंभ सिंह राशि में गुरु होने से होता है। नासिक कुंभ में गुरु कर्क राशि में होते हैं तब कुंभ का आयोजन होता है। सिंह राशि में पृथ्वी पर दो कुंभ होते हैं। नासिक, उज्जैन में। ये दोनों कुंभ जब होते है जब देव पुरोहित सिंह राशि पर होते हैं। कर्क राशि में जब गुरु होते हैं ये गुरु की उच्च राशि है। इसमें कुंभ ब्रह्म लोक में होता है। जिसमे सप्त ऋषि, राजा बलि, नारद, हनुमान, आठ वसु, ध्रुव, सनत कुमार इत्यादि पांचों भाई, शुकदेव इत्यादि इसमें स्नान करते हैं।
हरिद्वार कुंभ में मेष संक्रान्ति के दिन सूर्यवंशी राजा, पूर्णिमा को चंद्रवंशी राजा अपने पुरोहित के साथ स्नान करते हैं। स्वर्ग लोक में कुंभ जब होते हैं जब गुरु धनु राशि और मीन राशि में होते हैं। इसमें भी धनु में जब गुरु होते हैं तो त्रिदेव के साथ सभी देव, असुर स्वर्ग गंगा में स्नान करते हैं। मीन राशि में जब गुरु होता है तब सभी मातृ शक्ति, इंद्र की पत्नी सचि के साथ स्नान करती हैं। ये स्वर्ग लोक का कुंभ एक दिन होता है क्योंकि पृथ्वी का एक वर्ष वहां के एक दिन के तुल्य होता है। उन्होंने बताया कि मेष, वृश्चिक, राशि में जब गुरु होते हैं तो नाग लोक में कुंभ होते हैं। इसमें भी त्रिदेव स्नान करते हैं। मिथुन और कन्या में यक्ष लोक में स्नान होता है तथा वहां उत्सव होता है। ईश्वर की आराधना होती है। सामूहिक रूप से पूजा होती है। तथा त्रिदेवों को प्रसन्न करने के लिए अनेक आयोजन होते हैं। श्री मिश्रपुरी के मुताबिक गंधर्व लोक में स्नान तुला, मकर राशि में गुरु जब होते है तब होता है। इसमें नृत्य, साम वेद के गान समस्त सुरांे से ईश्वर की पूजा करते हंै। तीन माह तक बहुत ही आनंद मनाया जाता है, क्योंकि पृथ्वी का एक मास वहां के तीन मास के बराबर होता है। उन्होंने बताया कि पृथ्वीवासी बहुत ही भागयशाली हैं कि हमें चार कुंभ में ईश्वर की आराधना का फल मिलता है। कुंभ में किया गया दान, जाप का फल अक्षय होता है। इसी प्रकार इस समय में किया हुआ पाप भी अक्षय होता है। कुंभ के समय तीर्थ पर किया हुआ पुण्य सदैव पुण्य कारी होता है। तथा पाप भी अक्षय होता है।