पं. श्री राम शर्मा के विचारों का होगा वैश्विक स्तर पर अध्ययन

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हरिद्वार। कोरोना महामारी से ग्रसित विश्व जब भविष्य की अनिश्चित्ताआंे को निहार रहा है तब आशा और निराशा के मध्य झूल रहे यौवन मन की स्थिति अकल्पनीय ही है। ऐसे में जब प्रत्येक राष्ट्र अपने अपने तरीके से इस महामारी को परास्त करने का प्रयास कर रहा है तब भारतीय दर्शन का मूल वसुधेव कुटम्बकम की भावना सर्वत्र प्रसारित हो यह समय की महती मांग है। इसी भावना को युवा मन में प्रसारित करने के लिए विश्व प्रसिद्ध हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय और मेसच्युसेट विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से एक पाठ्यक्रम निर्मित किया है जिसका नाम है पर्स्पैक्टिव ऑन एज्युकेशन जिसमें उन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रतिनिधि एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या के एक अंतराष्ट्रीय मंच पर हुए उद्बोधन को सम्मिलित किया।
अक्तूबर 2019 में डॉ. पण्ड्या को यूके स्थित वन यंग वर्ल्ड नामक एक वैश्विक समारोह में आमंत्रित किया गया था। जहां उन्होंने पं. श्रीराम शर्मा के विचारो को प्रस्तुत करते हुए “वसुधेव कुटुम्बकम” की भारतीय भावना को विश्व की समस्या का समाधान बताया था। इसी उद्बोधन में डॉ. पण्ड्या ने पं. श्रीराम शर्मा वैश्विक चेतना का विचार प्रस्तुत किया। जिसे प्रेस्पेटिव एजुकेशन पाठ्यक्रम की समन्वयक प्रो. मौरीन हॉल ने डॉ. पंड्या के उद्बोधन को विशिष्ट महत्त्व दिया और प्रतिभागियों के प्रतिभाव भी लिए। अनेक प्रतिभागियों ने उद्बोधन को खूब सराहा और वर्तमान समय की अति आवश्यक अवधारणा बतायी। प्रतिभागियों में से ब्रुक थर्स्टन का कहना है की मुझे डॉ. चिन्मय पंड्या का उद्बोधन बड़ा की आनंदित करने वाला लगा। अब मुझे विश्वास है की हम सब एक परिवार है और पृथ्वी पर रह रहे सभी वैश्विक परिवार के सदस्य है। मुझे लगता है जो हम वर्तमान परिस्थिति में अनुभव कर रहे है तब विशेष रूप से हमंे और नजदीक आना चाहिए और एक दूसरे के भीतर शांति और प्यार स्थापित करना चाहिए। अभी अतिआवश्यक है की हम सब एक परिवार की तरह साथ आए और सहयोग से रहे।
इसी पाठ्यक्रम के प्रतिभागी कैमेरॉन हिक्सोन ने कहा की डॉ. पंड्या द्वारा दिए गए तर्क के अनुसार हमंे सामूहिक रूप से धर्म और जाति जैसे भेदांे को स्वीकार कर मानवता की धुरी पर संयुक्त रहना चाहिए। इस तरह के अनुभवों और चिंतन को उजागर करने वाले पं. श्रीराम शर्मा के विचारो से निश्चित ही भविष्य के शिक्षक और उनसे संपर्क में आने वाले विद्यार्थी प्रभावित होंगे और वैश्विक बंधुता की महत्वपूर्ण आवश्यकता के समाधान की और आगे बढ़ेंगे।

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