होटल खोलने का निर्णय, सरकार ने किया जनता व होटल संचालकों के साथ धोखा

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हरिद्वार। अनलॉक 1 में 8 जून से धार्मिक स्थलों के साथ होटल, रेस्टोरंट, मॉल आदि खोले जाने की अनुमति देने के बाद से लोगों में खुशी है। किन्तु होटलों को खोले जाने की अनुमति देने के साथ प्रदेश सरकार ने होटल संचालकों और आम जनता के साथ धोखा देने का काम किया है। सरकार की गाइड लाईन के मुताबिक होटलों को खोला जाना लॉकडाउन के स्थिति के बराबर है। ऐसे में होटल स्वामी होटलों से पाबंदी हटने के बाद भी निराश हैं।
बता दें कि 8 जून से प्रदेश सरकार ने नई गाईड लाईन के मुताबिक खोले जाने की अनुमति दी है। किन्तु जो शर्तें सरकार ने होटलों के खोले जाने पर लगायी है। वह होटल संचालकों के साथ आमजन से भी धोखे जैसा है। सरकार की गाइड लाईन के मुताबिक जो यात्री होटल में आकर ठहरेंगे उन्हें कहीं भी किसी भी धार्मिक व पर्यटक स्थल पर जाने की अनुमति नहीं होगी। यदि वे जाते है। तो उसकी जिम्मेदारी होटल संचालक की होगी। गाइछ लाईन के मुताबिक होटल में आने के बाद सात दिनों तक होटल में ही ठहराना हो और बाहर जाने की अनुमति नहीं होगी। ऐसे में यात्री उत्तराखण्ड में आना क्यों पसंद करेगा। सरकार के नियम के मुताबिक होटल में आने वाला व्यक्ति सात दिनों तक अपने को एंकातवास में रखेगा। यदि किसी यात्री को होटल में आकर ही सात दिनों तक एकांतवास मे गुजारने हैं तो इससे अच्छा वह अपने घर पर रहना ही एचित समझेगा। वहीं केन्द्र सरकार की गाइड लाईन के मुताबिक 10 वर्ष तक के बच्चों और 65 साल से ऊपर के बुजुर्गों को बाहर निकलने से परहेज करने की सलाह दी गयी है। किन्तु प्रदेश सरकार की गाइड लाईन के मुताबिक यात्री अपने साथ 10 वर्ष तक के बच्चों को ला सकते हैं किन्तु उन्हें दो दिन रहने की ही अनुमति होगी और वह भी होटल से बाहर नहीं जा सकेंगे। ऐसे में जहां एक ओर केन्द्र सरकार 10 वर्ष तक के बच्चों को घरों में रहने की सलाह दे रही है वहीं प्रदेश सरकार ने इसकी अनुमति दे दी हैं। इस नई गाइड लाईन के जरिए सरकार क्या संदेश देना चाहती है। क्या प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ कहे जाने वाले पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने यह नीति बनायी है। सवाल उठता है कि जब व्यक्ति प्रदेश में आने के बाद यदि किसी होटल में ठहरता है तो वह सात दिनों तक क्यों होटल में ही एकांतवास में रहेगा। क्यों उसे बाहर जाने की अनुमति नहीं होगी। यदि यात्री में कोरोना संक्रमण जैसे लक्षण दिखायी देते हैं तो उसकी जिम्मेदारी होटल संचालक पर थोपना क्या सही है।
वहीं दूसरी ओर सरकार के इस निर्णय को देखते हुए होटल संचालकों ने होटलों में यात्रियों के लिए सभी व्यवस्थाएं दुरूस्त कर ली थीं। जिन होटलों से स्टाफ जा चुका था उन्हें भी होटल खुलने की आस में बुला लिया गया। सरकार के इस निर्णय से होटल संचालकों पर दोहरी मार पड़ेगी। पहला तो जब होटल से यात्री को 7 दिनों तक बाहर निकलने की पाबंदी है। तो वह होटल में क्यों ठहरेगा। दूसरा यह की होटल में जो स्टाफ आ चुका है वह यात्रियों के न आने से होटल संचालक उनका वेतन आदि का भार कैसे वहन करेंगे। इन सबसे लगता है कि शायद सरकार लॉकडाउन के चलते हताश हो चुकी है और इसी कारण वह इस प्रकार के निर्णयों को जनता पर थोपने का कार्य कर रही है। होटल संचालकों का कहना है कि इससे बेहतर होता की सरकार होटलों को खोलने की अनुमति नहीं देती।

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