महाकुंभ शब्द साहित्य के साथ दुराचरण करने जैसा

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हरिद्वार। कुंभ और अर्द्ध कुंभ को महाकुंभ का नाम देना साहित्य के साथ दुराचरण करने जैसा है। महाकुंभ कोई शब्द ही नहीं है। परम्परा में भी अर्द्धकुंभ और कुंभ पर्व का विधान है। ऐसे में महाकुंभ नाम देना सरासर गलत है।
ज्योतिषाचार्य पं. प्रदीप जोशी के मुताबिक देश में चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुंभ पर्व आयोजित होने का विधान है। प्रयागराज और हरिद्वार में अर्द्धकुंभ का भी आयोजन होता है। ऐसे में अब कंुभ और अर्द्धकुंभ पर्व को महाकुंभ कहना सरासर गलत है। श्री जोशी ने बताया कि महाकुंभ कोई शब्द ही नहीं है। ऐसे में हरिद्वार में आगामी वर्ष 2021 मंे होने वाले कुंभ पर्व को महाकुंभ पर्व का नाम देना गलत है। यह साहित्य के साथ दुराचरण करने जैसा है।
वहीं अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाब बलराम दास हठयोगी ने कहाकि वर्तमान में भेड़ चाल हो चुकी है। चाहे शासन-प्रशासन हो या संत सभी भेज़ चाल के वशीभमत हो चुके हैं। कहाकि महाकुंभ की कभी परम्परा ही नहीं रही। ऐसे में जो लोग शासन-प्रशासन के महाकुंभ का प्रचार कर रहे हैं उन्हें भी इस बात पर सोचना चाहिए की महाकुंभ जैसा कोई पर्व नहीं है। सदियों से कुंभ और अर्द्धकुंभ पर्व आयोजित हो रहे हैं। कहाकि जब भेड़ चाल का जमाना है तो कोई कुछ भी लिखने के लिए स्वतंत्र है। संतों में भी पहले मण्डलेश्वर हुआ करते थे आज सभी अपने नाम के आगे महामण्डलेश्वर लिखते हैं। जबकि महामण्डलेश्वर भी कोई शब्द नहीं है। उन्होंने आमजन मानस से भेड़ चाल से बचने की अपील की।

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